दुनियाभर के मुस’लमान इस रविवार और सोमवार की रात को शब-ए-बारात के रूप में मना रहें है. यह हर साल इ’स्ला’मिक कैलेंडर के आठवे महीने ‘शाबान’ की 15वीं रात को मनाई जाती हैं. मुस’ल’मानों के लिए यह रात बेहद खास होती है. इसे मा’फी की रात भी कहा जाता है. इस लोग इबादत करते हैं और खु’दा से अपनी ग’ल’तियों की माफी मांगते हैं. इस मौक़े पर रि’श्तेदारों की क़’ब्रों पर जाने और दान देने का भी रिवाज है. हांलकी सऊदी अरब समेत कई ऐसे भी मुस’लिम देश हैं जहां इस शब-ए-बारात को नहीं मनाया जाता है.Shab e Barat 2018: Significance, importance and all you need to know about the Muslim festival | Religion News,The Indian Express
जानकार बताते हैं कि ”शब-ए-बारात के ज़्यादातर रिवाज सूरज ढलने के बाद पूरे किए जाते हैं. सूरज ढलने के बाद तीन काम किए जाते हैं. क़ब्र पर मोम’ब’त्ती ज’ला’ना, रोशनी से घर सजाना और तीसरा घर में कोई मीठी चीज़ बनाना”
शब-ए-बारात मो’ह’म्मद साहब की यात्रा का उत्सव है जिसे शब-ए-क़’द्र भी कहते हैं. माना जाता है कि शब-ए-क़’द्र शब-ए-बा’रात की रात को पड़ा होगा. इसलिए मु’स’लमान रात भर जागकर प्रार्थना करते हैं. कहा जाता है कि शब-ए-बारात की रात मो’हम्म’द साहब को ई’श्वर ने सात तरह की दुनिया दिखाई थी. शब-ए-‘बारा’त का मौक़ा इसी का उत्सव है. दुनिया के हर म’ज़’हब में हरेक त्योहार का एक ख़ास धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश होता है.

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