इस्ला’म धर्म के मुकदद्दस महीनों में शुमार रजब महीने की 27वीं रात को शब-ए-मेराज कहा जाता है. आज यानी 10 मार्च की रात शब-ए-मेराज की रात है, जिसे शबे मेराज के नाम से भी जाना जाता है. यह रजब की सत्ताईसवीं रात को मनाया जाने वाला एक प्रमुख इ’स्लामिक पर्व है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इसी रात अल्लाह के रसू’ल हजर’त मुहम्म’द सल्ल’ल्लाह अलै’ह व सल्ल;म की मुलाकात अल्लाह से हुई थी. अरबी भाषा में शब का मतलब रात है, इसलिए इस रात को मुहम्म’द सल्लल्लाह अलैह व सल्लम की अल्लाह से मुलाकात की पाक रात भी कहा जाता है. माना जाता है कि इसी रात मोहम्म’द साहब ने मक्का से बैत अल मुखद्दस तक की यात्रा की थी, फिर सातों आसमानों की सैर करते हुए उन्हें अल्ला’ह के दर्शन प्राप्त हुए थे.Download premium image of Muslim woman praying in Tashahhud posture 425819 | Wanita, Betet
मान्यताओं के अनुसार, इस घटना को इसरा और मेराज के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि इसी घटना के बाद से शब-ए-मेराज का यह त्योहार मनाया जाने लगा. चलिए जानते हैं इस्लाम धर्म में इस पर्व का महत्व और इतिहास.
क्यों मनाया जाता है शब-ए-मेराज ?
शब-ए-मेराज को मुस्लिम समुदाय में मनाए जाने वाले महत्वपू’र्ण त्योहारों में से एक माना जाता है. इस दिन को किसी चम’त्कार से कम नहीं माना जाता है. इ;स्लामिक मान्यताओं को अनुसार, इसी दिन मोहम्मद साहब को इसरा और मेराज की यात्रा के दौरान अल्ला’ह के विभिन्न निशानियों का अनुभव मिला था. इसी दिन उनकी अल्ला’ह से मुलाकात हुई थी. इस यात्रा के पहले हिस्से को इसरा और दूसरे हिस्से को मेराज कहा जाता है.

क्या है शब-ए-मेराज का इतिहास ?
इस्लाम धर्म में शब-ए-मेराज की घटना को सबसे महत्वपूर्ण और चम’त्कारी माना गया है. कहा जाता है कि इसी रात पैंगबर मोहम्मद साहब ने मक्का से येरुशल’म की चालीस दिनों की यात्रा रात के महज कुछ घंटों में ही तय कर ली थी और फिर सातों आसमा’नों की यात्रा करके श’रीर समेत अल्लाह तआला के दर्शन प्राप्त किए थे. इसरा और मेराज इस यात्रा के दो भाग हैं. रजब की सत्ताइ’सवीं तारीख की रात को ही पैगंबर मोहम्म’द साहब की मुलाकात अल्लाह से हुई थी, तभी से इस विशेष दिन पर शब’-ए-मेराज मनाया जाने लगा.

इस्ला’म में शब-ए-मेराज का महत्व
शब-ए-मेराज इस्लाम धर्म में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. कहते हैं कि इसी रात अल्लाह तआला ने अपने नबी करीम को देखने और मिलने के लिए अर्शे-आजम पर बुलाया था. इसी रात इस्लाम धर्म के लोग नफिल नमाज अदा करते हैं और कुरआन पाक की ति’लावत भी करते हैं, क्योंकि इस रात इबाद’त करने का खास महत्व होता है. वैसे तो कई लोग रजब के पूरे महीने रोजे रखते हैं, लेकिन इस महीने की 26 और 27 तारीख को रोजा रखने का अलग ही महत्व है. माना जाता है कि इन दो दिनों के रोजों से रोजे’दारों को बहुत सवाब मिलता है.

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