दुनिया जानती है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी शासकों ने यहूदियों पर जु’ल्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन उस वक्त ना’जियों के नियंत्रण वाला एक देश ऐसा भी था जहां के परिवार यहू’दियों को बचा रहे थे.
यह तस्वीर यूरोप के मुस्लिम बहुल देश अल्बानिया के एक संग्रहालय की है. अल्बानिया के दक्षिणी छोर पर बसे शहर बेरात का यह संग्रहालय अपने खजाने में यहूदियों का 500 साल पुराना इतिहास, उनकी कहानियों समेत तमाम धरोहरों को सहेजे हुए हैं. मुस्लिम देश अल्बानिया और यहूदियों के बीच का रिश्ता बेहद ही दिलचस्प है. माना जाता है कि अल्बानिया नाजी शासन के तहत आने वाला इकलौता ऐसा पड़ोसी राज्य था जहां द्वितीय विश्व यु’द्ध के बाद यहूदियों की आबादी बढ़ गई थी. आबादी बढ़ने का कारण था वहां बसे ऐसे साधारण परिवार जिन्होंने अपनी बहादुरी की दम पर नाजी या’तनाओं से भागकर आने वाले सैकड़ों रि’फ्यूजियों को पनाह दी थी.
साल 2018 में बेरात में खुला यह म्यूजियम यहूदियों के इसी संबंधों की बानगी पेश करता रहा है. म्यूजियम का रख-रखाव लंबे समय तक वहां के इतिहासकार साइमन बुर्शो करते रहे. लेकिन फरवरी 2019 में साइमन की 75 साल की उम्र में मौ’त हो गई, जिसके चलते अब इतिहास के इन दस्तावेजों पर खतरा मंडराने लगा है. जब तक साइमन जिंदा थे वह अपनी पेंशन और छोटे-मोटे दान के बल पर म्यूजियम का खर्चा संभाल लेते थे. लेकिन अब सवाल है कि इसे कौन संभालेगा?
साइमन के इस खजाने से पता चलता है कि 16वीं शताब्दी में यहूदी समुदाय सबसे पहले स्पेन से बेरात आया था. इतना ही नहीं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान साल 1943 में जब जर्मन प्रशासन ने अल्बानिया को अपने नियंत्रण में ले लिया, तब भी वहां के स्थानीय प्रशासन ने देश में छिपे यहूदियों को देने से इनकार कर दिया था. इसी वीरता और शौर्य का नतीजा था कि युद्ध के दौरान वहां यहूदी आबादी कई सौ से बढ़कर 2000 के पार हो गई थी. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1920 के दशक में जर्मनी की हालत बेहद खराब थी. दो वक्त का खाना जुटाना तक बड़ी चुनौती थी. देश को राजनीतिक स्थिरता की जरूरत थी. 1926 के चुनाव में हिटलर की पार्टी को सिर्फ 2.6 फीसदी वोट मिले. लेकिन सितंबर 1930 में हुए अगले चुनावों में उसकी पार्टी (NSDAP) को 18.3 फीसदी वोट मिले. लेकिन कैसे?
इस्राएल के होलो’कॉस्ट मेमोरियल याद वाशेम के मुताबिक, “जर्मन कब्जे के दौरान अल्बानियाई सीमाओं के भीतर रहने वाले लगभग सभी यहू’दियों को बचा लिया गया था, सिवाय एक परिवार को छोड़कर जिसके सदस्यों को डिपोर्ट किया गया था और उसमें पिता को छोड़कर सभी की मौ’त हो गई थी. जब इतिहास के इस हिस्से को अल्बानियाई समझाते हैं तो वे कहते हैं कि इसका सच ‘बेसा’ में छिपा है. बेसा इनकी संस्कृति संहिता का हिस्सा है जो कहता है कि किसी भी सूरत में वादा निभाया जाना चाहिए.
आज अल्बानिया में ना के बराबर यहूदी रहते हैं. देश की राजधानी तिराना में करीब 100 यहूदी ही रहते होंगे. दरअसल द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अल्बानिया में कम्युनिस्ट शासन स्थापित हो गया और साल 1991 में जब वह टूटा तो अधिकतर यहूदी इस्राएल रवाना हो गए. जब अल्बानिया में साम्यवाद का पतन हुआ तब जाकर दुनिया के सामने वहां के लोगों द्वारा यहूदियों को बचाने जाने वाले किस्से सामने आएं. देश के इस इतिहास पर अल्बानिया गौरव महसूस करता है. सरकार हर साल हो’लोकॉस्ट रिमेंबरेंस डे मनाती है और तिराना में एक प्रदर्शनी लगती है. इन सब के बावजूद भी साइमन बुर्शो का संग्रहालय इकलौता ऐसा खजाना है जो यहूदियों के इतिहास में जाकर उनसे जुड़े हर पहलू को खंगालता है. मई 2018 में खुले इस संग्रहालय को अब तक दुनिया के हजारों लोग देखने पहुंचे हैं. बुर्शो की पत्नी एंजीलिना बेहद ही नम आंखों से कहती हैं, ‘मुझे इस संग्रहालय के भविष्य की चिंता है’