इस न,श्वर संसार में ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य है. इन्सान को ईश्वर ने सभी स,लाहियतों से नवाजा है फिर ज्यादतर मनुष्य इस संसार में अ,वतार लेने के बाद अपने म,नुष्यता के गुण के खो देते हैं. लेकिन इस सब के बावजूद इस संसार में कई ऐसे नेक इन्सान हैं जो मानवता को सर्वोपरि मानते हुए अपने जीवन नि,र्वाह कर रहे हैं. आज के इस विशेष लेख में हम आपको भारत की पु,ण्य धरती पर जन्मी दो ऐसी ही बेटियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी जिन्दगी गरीबो की सहायता करने और महिलाओं व बेटियों को स,शक्त बनाने में व,क्फ कर दी है.
रश्मि आर्या- छत्तीसगढ़ की रहने वाले रश्मि आर्या के जीवन का बस एक ही लक्ष्य है बेटियों के जीवन को संवारना और उनके सपनों को नई ऊंचाइया देना. संस्कृत और समाजशास्त्र से एमए और बीएड की डिग्री हासिल कर चुकी रश्मि ने अपनी बेटियों की जिन्दगी संवारने के लिए स्कूल की सरकारी नौकरी छोड़ दी.
समाज में बेटियों और महिलाओं के साथ होने वाले भे,दभाव और दु,र्व्यवहार ने रश्मि आर्या की अं,तरात्मा को ऐसा झ,कझोरा कि महज 14 साल की उम्र में अपना घर बार छोड़कर बेटियों को साक्षर बनाने का जिम्मा उठा लिया.
बे,सहारा बेटियों की शिक्षा के लिए 2005 में परीक्षतगढ़ ब्लॉक के नारंगपुर गांव में रश्मि ने एक श्री,मद् द,यानंद कन्या गुरुकल बनाया और शुरुआत में पांच बेटियों के साथ पढ़ाई शुरू की. उनके द्वारा लगाया ये पौधा अब हिमालय की तरह नारंगपुर में सुशोभित हो रहा है और इसकी छत्रछाया में न जाने कीतनी ही बच्चियां ने अपने जीवन को संवारा है.
गुलशन सैफी- मूल रूप से नारंगपुर की रहने वाले गुलशन सैफी ने रश्मि आर्या का इस नेक में पूर्ण साथ दिया. 1 दिसम्बर 1993 को जन्मी गुलशन सैफी ने मात्र 13 वर्ष की अवस्था में ही गुरुकुल को सींचने का कार्य शुरू कर दिया.
बीएससी, एमबीए और एलएलबी की शिक्षा हासिल कर चुकी गुलशन सैफी को शुरुआत में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. आज ये रश्मि आर्या के साथ मिलकर बेटियों के जीवन में छाए हुए अ,ज्ञानरुपी अं,धकार को ज्ञा,नरूपी दीपक से समाप्त कर रही हैं. गुलशन बेटियां स,शक्त बनें इसलिए गुरुकुल में उन्हें मार्शल आर्ट, योग, जूड़ो, कराटे और नि,शानेबाजी के साथ-साथ विभिन्न खेलों की तैयारी कराती हैं.