जिन्नातों की बनाई हुई मस्जिद: आज के आधुनिक दौर में शायद आप यह बात सुनकर चौंक जाएं. हो सकता है कि कुछ लोग इस बात को सही भी ना मानें. पर यह सच है, इस मस्जिद का निर्माण बड़ा ही अजीबोगरीब तरीके से हुआ था. जिसके कई क़िस्से सुनने को मिलते हैं. इस मस्जिद का इतिहास 350 साल से भी ज़्यादा पुराना है. बताते हैं कि यह मस्जिद रातों-रात किसी अदृश्य शक्ति ने निर्मित कर दी थी.
एक सुबह जब इस इलाके के लोग, सुबह को सो कर उठे, उन्होंने पाया कि जिस जमीन पर पहले कुछ मौजूद नहीं था, वहां रात भर में एक मस्जिद बन कर तैयार हो गई थी. जिन्नातों की मस्जिद के नाम से मशहूर यह मस्जिद कानपुर शहर के जाजमऊ इलाके में स्थित है.
देशभर में और भी कई जगह हैं ऐसी मस्जिदें, जो जिन्नातों के वजूद से जुडी हैं
ऐसा कहते हैं कि जब जिन्नातों की मस्जिद का, रात भर से निर्माण चल रहा था और जैसे ही सुबह की फजर की अजान हुई तो जिन्नात यहां से मस्जिद का काम पूरा किए बिना ही चले गए. हालाँकि मस्जिद पूरी बन चुकी थी, लेकिन मस्जिद का ऊपरी गुंबद का काम अधूरा रह गया था.
बताया जाता है कि इस गुंबद में एक छेद भी है, जिसमें से आज भी बरसात का पानी अंदर नहीं आता. अगर ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए तो खोजबीन करने से ये पता लगता है कि इस मस्जिद का निर्माण 1092 हिजरी में हुआ था. यानी कि अब से लगभग 350 साल पहले.
जिन्नातों की मस्जिद के मौलवी, इशरत हुसैन के अनुसार इस मस्जिद और करामाती जगह को देखने के लिए दुनिया भर के लोग यहां आते हैं, और मन्नत मांग कर उसे पूरी होते हुए भी देखते हैं. वह बताते हैं कि इस मस्जिद में जिन्न और शय आम आदमी साथ बैठकर नमाज अदा करते हैं, और लोगों की फरियाद में भी सुनते हैं.
जिन्नात उसका समाधान भी निकालते हैं. मौलवी के अनुसार इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल है कि आपके साथ सफ में जो शख्श खड़ा होकर नमाज़ पढ़ रहा है, वह कोई इंसान है या फिर कोई जिन्नात, यहाँ अक्सर कई लोग अजब तरह के आभास और एहसास से गुज़रते हैं.
हालाँकि देश के कई हिस्सों में और भी इस तरह की मस्जिदों के बारे में सुनने को मिला है. हमारी टीम जाकर वहां पड़ताल करेगी, जिसके बाद में हम लोग आपको एक-एक करने उन सभी मस्जिदों के बारे में जानकारियां देते रहेंगे. यहाँ मस्जिद के इमाम ने कैमरा पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया था. यहाँ तक के मस्जिद के अन्दर भी फोटो नहीं लेने दिए और न ही विडियो बनाने दी गयी.
कुछ लोग और कुछ बुजुर्गों के मुहँ से इस मस्जिद के बारे में कई कहानियाँ बरसों पहले से सुनते चले आ रहे हैं. जिनमें से एक कहानी के अनुसार ये बताया जाता है कि पुराने समय में यहां का राजा हर त्योहार या कोई ख़ास दिन आने पर एक आदमी की ब’लि चढ़ा दिया करता था.
वह राजा उसके खून से, किसी शक्ति को खुश करने की कोशिश किया करता था. जिससे चारों तरफ के लोग काफी परेशान थे. लेकिन राजा इतना ताकतवर था कि, उसके आगे कोई मुंह नहीं खोल सकता था. बताते हैं कि उसी वक्त एक पीर फकीर ने अपनी ताकत से उस प्रथा को बंद करा दिया.
इसके बाद वहां के सभी गांव वालों ने खुश होकर इस मस्जिद को बनवाया था. जिसमें वहां मरने वाली आत्माओं का बड़ा योगदान भी रहा था, जिसकी वजह से यह मस्जिद एक रात में ही बनकर तैयार हो गई. इसी वजह से लोगों का विश्वास जिन्नातों में हो गया.
आज भी लोग यहां जिन्नातों की मस्जिद में, बुरी आत्माओं से बचने के लिए मन्नत मांगने के लिए आते हैं. इसके लिए वह लोग मस्जिद के दरवाजों पर ताला लगाते हैं, और कपड़े की एक गांठ भी बांधते हैं.
इतिहास की मानें तो औरंगजेब के कानपुर क्षेत्र के सिपहसलाहकार कुलीज़ खान जो कि कानपुर क्षेत्र का ही प्रभारी था और हैदराबाद के निजाम मीर अली उस्मान के खानदान से ताल्लुक रखता था. उसने अपनी बेगम पर से बुरे साए को दूर करने के लिए इसी जिन्नातों की मस्जिद में नमाज अदा की थी, और और यहां गाँठ भी बांधी थी.
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