साल 2020। एक सैनिक रूसी टी-72 टैंक के पास खड़ा है।

तभी ड्रोन से दागी गई एक मिसा’इल आकर उससे टकराती है। पल भर में आग और धुएं के गुबार ने आसमान को ढंक लेता है। जब तस्वीर साफ होती है तो दिखता है कि उस जवान के दोनों पैर उड़ गए हैं, जबकि टैंक अब आग का गोला बन गई है। जी हां, यह घ’टना आर्मीनिया-अजरबैजान यु’द्ध की है। जिसमें नागोर्नो-काराबाख पर कब्जे को लेकर दोनों देशों ने दो महीने से भी ज्यादा समय तक एक दूसरे से यु’द्ध लड़ा।

एर्दोगन बोले- सऊदी अरब खरीदना चाहता है तुर्की का ड्रोन, तुर्की ड्रोन ने कराबाख की जीत में ... - Naiduniya24

इस युद्ध के दौरान अजरबैजान ने तुर्की और इ’जरा’यल के ड्रो’न्स का भरपूर इस्तेमाल कर यु’द्ध का रूख ही मोड़ दिया। आर्मीनिया के ऊपर रूस का हाथ होने के बावजूद उसे हार का सामना करना पड़ा। यु’द्ध में ड्रो’न के इस्तेमाल और प्रभाव को देख अमेरिका और रूस तक हैरान थे। इस युद्ध के बाद दुनियाभर की सेनाएं दुश्म’नों के खिला’फ यु’द्ध के लिए ड्रो’न आर्मी को तै’नात कर रही हैं।

पिछले कई साल में छोटे-मोटे क्षेत्रीय संघर्ष में ड्रोन्स के इस्तेमाल ने अपनी उपयोगिता को बखूबी साबित किया है। इसलिए, आज के जमाने में ड्रोन को यु’द्धक्षेत्र के नए रणनीतिक और प्रभावशाली हथि’यार के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका-रूस और ब्रिटेन के कई सैन्य अधिकारी तुर्की और चीन में बने ड्रोन्स को लेकर गं’भीर चिं’ता जता चुके हैं। ब्रिटेन के रक्षा सचिव बेन वालेस ने सीरिया में तुर्की के ड्रो’न को लेकर काफी सख्त बयान दिया था। उन्होंने तब कहा था कि तुर्की में बने ड्रोन वैश्विक भू-राजनीतिक हालात को बदल रहे हैं।

तकनीकी विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धियों ने सस्ते विकल्प तैयार किए हैं। यही कारण है कि तुर्की को अब उसके ड्रोन के कई खरीदार भी मिल रहे हैं। पिछले साल तुर्की ने दुनिया के सामने अपना बायरकटार टीबी 2 सशस्त्र ड्रोन प्रदर्शित किया था। अमेरिकी MQ-9 की तुलना में तुर्की का TB2 हल्के हथि’यारों से लैस है। इसमें चार लेजर- गाइडेड मिसा’इलें लगाई जा सकती हैं। इस ड्रोन को रेडियो गाइडेड होने के कारण 320 किमी के रेंज में ऑपरेट किया जा सकता है।

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