सूरज डूब जाने के बाद जो ह’ला’ल चीज़े दिन में छोड़ दी गयी थी या कहे जिन कामों खासकर के खाना,पानी पीना की इजाज़त मिल जाने को इफ्तार कहा जाता हैं। जिसे ज़्यादातर लोग या आम बोल चाल में रोज़ा खोलना कहा जाता हैं।
छुहारे या खजूर से इफ्तार करना सु’न्नत हैं। अगर यह न हो तो पानी से ही रोज़ा खोल लिया जाये। चूँकि खाली पेट मीठी चीज़ खाना तंदरुस्ती के लिए बेहतर हैं। इसलिए हमारे र’सू’ल के अलावा सारे न’बि’यों ने छुहारे या खजूर से ही रोज़ा इफ्तार करना बेहतर बताया हैं। पानी से भी इफ्तार करना बेहतर इसलिए हैं की क्यूंकि यह बदन में जमा सारी गंदगी को बाहर निकल देता हैं। ध्यान रहे रोज़ा ह’ला’ल चीज़ो से ही इफ्तार करे। अगर कहीं से रोज़ा खोलने के लिए कोई खाने पीने का सामान आये तो पहले गौर करे की यह सब सामान ह’रा’म क’मा’ई का हैं या ह’ला’ल कमाई का। अगर वह ह’रा’म कमाई का हैं तो उससे परहेज़ करना ज़रूरी हैं।
एक ह’दी’स में अ’ल्ला’ह के र’सू’ल फरमाते हैं! जो रमज़ान में किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराएगा उसके गु’ना’ह ब’ख्श दिए जायेंगे और वह ज’ह’न्न’म से आज़ाद कर दिया जायेगा। ध्यान रहे रोज़ा हमेशा ह’ला’ल कमाई से इफ्तार कराया जाये। दूसरी तरफ जो शख्स ख़ुशी से रोज़ा इफ्तारी में शामिल होगा वह भी उतने ही स’वा’ब का हक़दार होगा जितना इफ्तारी करवाने वाले शख्स को मिला हैं। एक स’हा’बा ने अर्ज़ किया या र’सू’ल’ल्ला’ह ! अगर किसी शख्स के पास इतना माल या खाना न हो जिससे वह किसी को अच्छे से रोज़ा न खुलवा सके उस सूरत में क्या वह भी उतने ही स’वा’ब का हक़दार होगा? आपने फ़रमाया यह स’वा’ब तो उसे भी मिलेगा जिसने एक घूँट पानी या दूध से किसी को रोज़ा इफ्तार करवाया हो। सुभानअ’ल्ला’ह
एक और ह’दी’स में अ’ल्ला’ह के र’सू’ल ने फ़रमाया ! जिसने किसी रोज़ेदार को पेट भर खाना खिलाया। अ’ल्ला’ह पा’क क़’या’म’त में उसे मेरे हौज से ऐसा शरबत पिलायेगा की उसे कभी प्यास नहीं लगेगी। इससे ही आप अंदाज़ा लगा सकते हो की किसी को रोज़ा इफ्तार करवाना किस हद तक स’वा’ब का काम हैं। एक चीज़ आप को बता दे की हालाँकि रोज़ा खुलवाना बड़ा सवा’ब का काम हैं इसका मतलब यह नहीं की आप खुद रोज़ा न रखे और सिर्फ रोज़ा खुलवाते रहे। आप को लगे की रोज़ा खुलवाने से इतना स’वा’ब मिल रहा हैं तो रोज़ा रखने की क्या ज़रूरत? यह आपकी ग’ल’त फ’ह’मी हैं। रोज़ा हर हाल में फ़र्ज़ हैं। सिर्फ इफ्तार करवाने से स’वा’ब तो मिलता हैं, लेकिन रोज़े का फ़’र्ज़ अ’दा नहीं होता। रोज़ा का फ़’र्ज़ अदा किये बिना कोई इ’बा’दत क’बूल नहीं होती।
आजकल देखा जाता हैं लोग म’स्जि’दों में इफ्तार का सामान भेजते हैं। कुछ लोग इफ्तार पार्टी का इंतेज़ाम करते हैं। ऐसे मौको पर कई बे’रो’ज़’दा’र लोग भी जमा हो जाते हैं। जो अच्छी सेहत होते हुए भी रोज़ा नहीं रखते। हालाँकि आप किसी को मना नहीं कर सकते लेकिन जो श’ख्स रोज़ा न होते हुए भी रोज़ेदार के हिस्से का खाना खा रहा हैं उसे खुद ही सोचना चाहिए की मैं सही हूँ या ग’ल’त। इसके अलावा कई इफ्तार पार्टियों में बड़े बड़े रा’ज’ने’ता र’सू’ख’दा’र लोग इफ्तार पार्टी के बहाने राजनीतिक रिश्तो को मज़बूत करने में लग जाते हैं। ऐसे लोगो को इफ्तार या रो’ज़े से कोई मतलब नहीं होता। वह सिर्फ अपने आपसी रिश्तो और दु’नि’या’वी फ़ायदा हासिल करने के म’क’स’द से ऐसी पार्टियां करते हैं। अगर आप एक सच्चे मोमिन हैं तो ऐसी पा’र्टि’यों से दूर रहे। क्यूंकि अक्सर ऐसी इफ्तार पा’र्टि’यों में इस्तेमाल किया जाने वाला खाना ह’रा’म कमाई का होता हैं। जिसे खाकर आप भी गु’न’ह’गा’र बन जायेंगे।