इ’स्ला’म‍ि’क मा’न्यताओं के मुताबिक, र’म’जा’न के महीने में रो’जे रखकर दुनिया में रह रहे ग’री’बों के दु’ख द’र्द को महसूस किया जाता है। रो’जे के दौरान सं’यम का ता’त्प’र्य है कि आंख, नाक, कान, जुबान को नि’यं’त्र’ण में रखा जाना क्योंकि रोजे के दौरान बु’रा न सुनना, बु’रा न देखना, न बु’रा बोलना और ना ही बु’रा ए’ह’सा’स किया जाता है। इस तरह से र’म’जा’न के रो’जे मु’स्लि’म स’मु’दा’य को उनकी धा’र्मि’क श्र’द्धा के साथ-साथ बु’री आ’द’तों को छोड़ने के साथ ही आ’त्म सं’य’म रखना भी सिखाते हैं।

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हालांकि, इससे जुड़े ऐसे कई म’स’ले हैं जिनके बारे में लोगों को ग’ल’त फ़’ह’मी रहती है. इन्ही में से एक म’स’ले पर आज बात करेंगे.

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ग़’ल’त फ़े’ह’मी- कुछ लोग समझते हैं कि जब तक अ’ज़ा’न होती रहे से’ह’री में खाना पीना जारी रखा जा सकता है, इस लिए वह अ’ज़ा’न होती रहती है और वह खाते पीते रहते हैं.

Helping the poor is considered to be the most important in Ramjan

सही म’स्अ’ला यह है: कि अ’ज़ा’न फ’जर और न’मा’ज़ फ’ज’र का वक्त तो तब शुरू होता है जब से’ह’री का वक्त ख़त्म हो जाता है, जो से’ह’री का टाइम ख़’त्म हो जाने के बाद भी खाता पीता रहता है उसने अपना रो’ज़ा ब’र’बा’द किया उसका रो’ज़ा हुआ ही नहीं, यानि जो अ’ज़ा’न होती रहती है और वह खाता पीता रहता है उसका रो’ज़ा माना ही नहीं जायेगा.

(फै’ज़ा’ने र’म’ज़ान स’फ’ह 110)

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