हिंदी सिनेमा की वो म’हा’न श’ख्सि’य’त जो 55 सालों तक अपने हुनर से सिनेमा के शौकीनों का मनोरंजन करता रहा। जो महज़ एक एक्टर नहीं था, बल्कि एक डायलॉग राइटर और स्क्रीन राइटर भी था। अपनी सदाबहार एक्टिंग से कभी इन्होंने दर्शकों को हंसाया तो कभी दर्शकों को रु’ला’या भी। वि’ले’नी में भी इन्होंने बड़ा शानदार मुकाम हासिल किया था। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का ऐसा कौन सा सितारा रहा होगा जो इनके दौर में रहा हो और जिसने इनके साथ काम ना किया हो। एक्टर्स तो इनके साथ काम करने के लिए तरसा करते थे।
Kader Khan साहब ने कैसे बे’त’हा’शा मु’फ’लि’सी से निकलकर सिनेमा में अपना एक बड़ा ही ज़बरदस्त मुकाम बनाया, आज यही किस्सा हम आपको बताएंगे।
Kader Khan की शुरूआती ज़िंदगी
22 अक्टूबर 1937. अ’फ’गा’नि’स्ता’न की राजधानी काबुल में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता अब्दुल रहमान खान एक अ’फ’गा’नी प’ठा’न थे। वहीं इनकी माता इकबाल बे’ग़’म भी प’ठा’न थी और वे ब’लो’चि’स्ता’न के पि’शी’न इलाके की रहने वाली थी। कादर खान जब काफी छोटे थे तो इनके माता-पिता काम की तलाश में मुंबई आ गए। इनका बचपन बेहद गरीबी में गुज़रा। गरीबी इतनी ज़्यादा थी कि उसके चलते इनके माता-पिता में झ’ग’ड़ा होने लगा और आखिरकार इनके माता-पिता त’ला’क लेकर अलग हो गए।
कादर खान और उनके बाकी भाई अपनी मां के साथ ही रहे। इनकी मां दूसरों के घरों में काम करके किसी तरह अपने बच्चों का पालन कर रही थी। इसी बीच इनके नाना ने इनकी मां पर दूसरी शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। और आखिरकार इनकी मां को दूसरी शादी करनी पड़ गई। लेकिन अपने सौ’ते’ले पिता से कादर खान की कभी नहीं बनी।
ऐसे Kader Khan ने लगाया पढ़ाई में मन
वहीं, इनकी मां अभी भी जी तोड़ मेहनत कर रही थी। मां को इस तरह दिन रात मेहनत करते देख कादर खान को बड़ा दुख होता था। एक बार तो इन्होंने फैसला कर लिया कि पढ़ाई छोड़कर अपने साथ के दूसरे बच्चों संग ये भी किसी फैक्ट्री में काम किया करेंगे। कम से कम इससे घर की गरीबी तो दूर होगी। किसी तरह इस बात की खबर इनकी मां तक पहुंच गई।
तब मां ने इन्हें समझाया कि तेरे दो तीन रुपए कमाने से हमारे घर की ग़रीबी दूर नहीं होगी। इसलिए तू सिर्फ पढ़ाई कर। क्या पता तेरी पढ़ाई से ही हम सब का भला हो जाए। मां की ये बात कादर खान के ज़े’ह’न में इस तरह बैठ गई कि फिर तो इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और खूब मन लगाकर पढ़ाई की।
इस नाटक से मशहूर हुए Kader Khan
इन्होंने इ’स्मा’इल यूसफु कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और फिर इसके बाद इन्होंने सिविल इंजीनियरिंग भी की। इन्हीं दिनों ये अपने कॉलेज में होने वाले ड्रामों में भी हिस्सा लेने लगे थे और इनकी एक्टिंग को लोग खूब पसंद भी किया करते थे। इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद इन्होंने मुंबई के भा’य’ख’ला में मौजूद एम.एच. सब्बू कॉलेज में 1970 से 1975 तक बतौर सिविल इंजीनियर प्रोफेसर काम भी किया।
नाटकों में काम करना इन्होंने यहां भी जारी रखा। ये अपने नाटकों को खुद ही लिखते थे और खुद ही उन नाटकों को डायरेक्ट भी करते थे। इतना ही नहीं, अपने लिखे नाटकों में ये एक्टिंग भी किया करते थे। इसी दौरान अपने कॉलेज के एनुअल डे में इन्होंने जो नाटक किया वो बेहद मशहूर हो गया। उस नाटक को हर कैटेगरी के अवॉर्ड मिल गए।
दिलीप कुमार की पड़ी नज़र
वो नाटक इतना चर्चित हुआ कि दिलीप कुमार साहब ने वो नाटक देखने की ख्वाहिश जताई। फिर जब दिलीप कुमार के सामने उस नाटक का मंचन फिर से किया गया तो वो कादर खान से बेहद प्रभावित हुए। लोकल ट्रेन नाम के उस नाटक में दिलीप साहब को कादर खान की अदाकारी बेहद पसंद आई। और दिलीप साहब ने तुरंत इन्हें दो फिल्मों के लिए साइन कर लिया।
ये फिल्में थी सगीना महातो और बैराग। हालांकि इनके करियर की पहली फिल्म रही फ’ज़्र अल इ’स्ला’म नाम की एक धा’र्मि’क फिल्म। लेकिन इस फिल्म का कोई नाम नहीं हुआ। कादर खान के करियर की पहली फिल्म मानी जाती है साल 1973 में रिलीज़ हुई दाग। जिसमें ये एक वकील की भूमिका में नज़र आए थे।
अमिताभ के लिए लिखे डायलॉग्स
इसी दौरान कुछ ऐसा भी हुआ कि बॉलीवुड में बतौर लेखक भी इनका करियर शुरू हो गया। हुआ कुछ यूं कि डायरेक्टर नरेंद्र बेदी एक दिन कादर खान के पास पहुंचे और इनसे बोले, “मैंने तुम्हारा वो बेहद मशहूर नाटक देखा है। और मैं चाहता हूं कि तुम मेरी फिल्म ज’वा’नी दि’वा’नी के डायलॉग लिखो।” और इस तरह ये बॉलीवुड में राइटर भी बन गए।
कहना चाहिए कि अमिताभ बच्चन को महानायक बनाने में इनके लिखे डायलॉग्स का बहुत बड़ा हाथ है। अमिताभ के पसंदीदा डायरेक्टर्स मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा अपनी फिल्मों के लिए कादर खान से ही डायलॉग्स लिखाया करते थे। अमिताभ की कई फिल्मों के डायलॉग्स इन्होंने लिखे।
इसलिए छोड़ दी वि’ले’नी
कादर खान ने फिल्मों में केवल डायलॉग्स ही नहीं लिखे, बल्कि कई फिल्मों के तो इन्होंने स्क्रीनप्लेज़ भी लिखे थे। बतौर कॉमेडियन तो ये लंबे समय तक बॉलीवुड पर राज करते रहे। लेकिन बतौर वि’ले’न भी कादर खान साहब का खूब नाम हुआ। लेकिन बाद में इन्होंने वि’ले’नी छोड़ दी। वि’ले’नी इन्होंने क्यों छोड़ी इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।
हुआ दरअसल यूं, कि कादर खान साहब ने एक दिन देखा कि उनके के बेटे सरफराज़ के सिर पर चो’ट लगी थी। उसके सिर से खू’न भी बह रहा था। कादर खान ने जब बेटे से वजह पूछी तो उसने बताया कि, मुहल्ले के लड़के उसे ताना मा’र रहे थे कि तेरा बाप तो वि’ले’न है। बस इसी बात पर झ’ग’ड़ा हो गया और उसका सि’र फू’ट गया। बस तभी इन्होंने फैसला कर लिया कि अब ये वि’ले’नी नहीं करेंगे।